Saturday 28 November 2015

(मुख्यमंत्री शिवराज के 10 साल –भाग 1) शिवराज सिंह चौहान :- व्यक्तित्व, राजनीति और प्रसाशनिक नेत्रत्व

(मुख्यमंत्री शिवराज के 10 साल –भाग 1)
शिवराज सिंह चौहान :- व्यक्तित्व, राजनीति और प्रसाशनिक नेत्रत्व
          
            इस 29 नवंबर को शिवराज सिंह चौहान बतौर मुख्यमंत्री अपने 10 साल पूरे कर लेंगे, इन 10 सालो मे शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश को क्या कुछ दिया और अपनी राजनीति को तमाम विरोधो विवादो के बीच कैसे बचाए रखा ये एक लंबी चर्चा का विषय हो सकता है, परंतु आज से 10 साल पहले प्रदेश की राजनीति, और भाजपा मे चल रही उथल पुथल के बीच शिवराज का प्रदेश की राजनीति मे इतने बड़े स्तर पर पदार्पण करना भी किसी अचंभे से कम नहीं था, बहरहाल उस समय हुए इस अप्रत्याशित परिवर्तन से प्रदेश को आज तक कभी किसी बड़े नुकसान का सामना नहीं करना पड़ा बल्कि शिवराज के मुख्यमंत्री बनने के बाद पिछले एक दशक मे प्रदेश के इतिहास मे एक बड़ी सामाजिक क्रांति ही देखी गई और 10 साल मे मुख्यमंत्री रहते शिवराज के अथक प्रयासो से प्रदेश के ग्रामीण इलाको मे हुए सामाजिक परिवर्तन के लिए की गई तमाम घोषणाओ, योजनाओं एवं उनके सफल क्रियान्वयन के दम पर भाजपा और शिवराज लगातार तीसरी बार प्रदेश की सत्ता पाने मे सफल हुए
           शिवराज जब राजनीति मे आए उस दौरान देश मे इन्दिरा और कांग्रेस के विरुद्ध एक बड़ी लहर देखी जा रही थी, 1975 मे देश मे लगे आपातकाल के दौरान जेल जाने वाले शिवराज कदाचित सबसे कम उम्र के स्वयं सेवक रहे होंगे, 77-78 मे जब देश मे जनता पार्टी कि सरकार बनी तब शिवराज ने संघ कि सेवा करने का ही मन बनाया और धीरे धीरे राजनीति मे अपनी परिपक्वता साबित करने लगे, 1977 से लेकर 1983 तक शिवराज सिंह चौहान ने छात्र राजनीति के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद मे विभिन्न पदो को अपने नेत्रत्व क्षमता से सुशोभित किया और बाद मे भारतीय जनता युवा मोर्चा मे प्रदेश के सयुंक सचिव बन कर अपनी राजनेतिक यात्रा को नई दिशा दी, 1988 मे जब शिवराज पहली बार युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष बने तब तत्कालीन कांग्रेस् सरकार के शासन और जुल्मो के विरोध मे एक मशाल जुलूस का आयोजन किया और उन्होने राजमाता सिंधिया से आग्रह कर इस जुलूस के नेत्रत्व करने की बात कही, तब प्रदेश मे भाजपा के तत्कालीन नेत्रत्व के सामने दो बड़ी चुनोतिया सामने आ गई कि क्या राजमाता सिंधिया, नाना जी देशमुख और कुशा भाऊ ठाकरे के कद और गरिमा केहिसाब से समर्थन जुट पाएगा ? ऐसे मे शिवराज ने ग्रामीण क्षेत्रो से 40000 किसानो के आने कि बात कहकर पूरे पार्टी नेत्रत्व को सहमा दिया , परंतु जब 7 अक्टूबर 1988 को भोपाल मे जुलूस निकला तब भोपाल आने वाली सारी सड़के ट्रैक्टर, ट्रक, जीप और बैलगाड़ियों से अटी पड़ी थी , संख्या 40000 से कही ज्यादा थी और दो दिन तक मशाल जुलुस मे आए ग्रामीणो का भोपाल से लौटना बदस्तूर जारी रहा , 7 अक्टूबर के दिन ही राजमाता सिंधिया ने शिवराज के सिर पर हाथ रख आशीर्वाद दिया और ऐलान किया कि यह लड़का राजनीति मे बेहूत आगे जाकर देश को नई दिशा प्रदान करेगा 
            शिवराज जब से राजनीति मे आए है उन्होने कभी अपनी ज़मीन छोड़ने की तनिक कोशिश भी नहीं की , वे हमेशा से अपने ठेठ अंदाज मे ही जनता के बीच जाते रहे और अपने भाषणो मे बुन्देली जुमलो का प्रयोग कर समाज के पिछड़े वर्गो के बीच लोकप्रियता हासिल करते रहे है, आज के आधुनिक युग मे जब सब कुछ हाइटेक हो रहा है ऐसे मे शिवराज ने अपने आप को कभी ऐसे प्रतीत नहीं होने दिया कि वो इस ह्रदय प्रदेश के मुखिया है, उनकी जनता के बीच शुरू मे बनी “पाव पाव वाले भैया” जैसी छवि आज भी बरकरार है जो कि उन्हे देश के अन्य मुख्यमंत्रियों से अलग करती है
          शिवराज आज ही नहीं बल्कि अपने राजनैतिक काल के प्रारम्भ से ही एक ऐसे  संवेदनशील व्यक्ति के रूप मे पहचाने जाने लगे थे जिसके मन मे गरीब, किसान, बुजुर्ग, महिलाओं और बच्चो कि बेहतरी करने के लिए हमेशा पीड़ा रही है , शिवराज सिंह चौहान जब 1991 मे बुधनी से विधायक और 1992 मे विदिशा से सांसद बने तब उन्होने हजारो कि संख्या मे सामूहिक विवाह कराये और कई कन्याओं का कन्यादान लेकर यह संदेश दिया कि कन्या धरती पर भोज नहीं है, और बाद मे जब वे मुख्यमंत्री बने तब उन्होने “कन्यादान योजना” बनाकर माताओं के भाई और बेटियों के मामा बनकर स्वयं कि छवि एक “मामा मुख्यमंत्री” के रूप मे स्थापित कर ली जो आज तक बदस्तूर जारी है, बतौर मुख्यमंत्री रहते उनके काल मे भ्रूण हत्या को रोकने के लिए जो काम शिवराज कि महत्वाकांछी “लाड़ली लक्ष्मी योजना” और “बेटी बचाओ अभियान ”ने किए वो अब तक देश का कोई बड़ा कानून भी संभव नहीं कर पाया है, आज प्रदेश मे 2001 कि मे प्रति हज़ार 919 महिलाओं कि संख्या बढ़कर 2011 मे 931 महिला प्रति हज़ार हो गई है
           गावों मे सामाजिक क्रांति लाने के लिए शिवराज सिंह चौहान के कुछ प्रयास और प्रसाशनिक नेत्रत्व अत्यंत सरहनीय रहे जो अनेक राज्यो एवं केंद्र के लिए अनुकरणीय बने,, गाव कि बेटी योजना, जननी सुरक्षा एव जननी प्रसव योजना, स्वागतम लक्ष्मी योजना, उषा किरण योजना, तेजस्विनी,वन स्टॉप क्राइसेस सेंटर , लाडो अभियान, महिला सशक्तिकरण योजना,  कन्यादान एवं निकाह योजना, शोर्य दल का गठन, छात्राओं के लिए मुफ्त पाठ्य पुस्तके, साइकिल, विभिन्न छात्रव्रतियाँ और नगरीय निकाय मे 50 प्रतिशत महिला आरक्षण कर महिला सशक्तिकरण कि दिशा मे देश भर मे सर्वाधिक कार्य होने के अद्वितीय उदाहरण बने, महिलाओं कि बेहतरी कि दिशा मे उठाए गए इन कदमो का श्रेय शिवराज को ही जाता है और इसी का परिणाम यह रहा कि 2013 मे हुए विधानसभा चुनाव मे महिलाओं ने शिवराज सिंह चौहान को जिताने मे कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी
            आज शिवराज प्रदेश के ऐसे मुख्यमंत्री के रूप मे पहचान बना चुके है जो प्रदेश के मुखिया भले हो परंतु ज़मीन पर जाकर काम करने से कभी परहेज नहीं करते ,एक सेवक के रूप मे वे गावों मे , खेतो मे , पंचायतों मे जाकर ये परखने का काम आज भी कर रहे है और अपनी ज़मीन की परख के बल पर ऐसी योजनाए बनाने मे सक्षम हुए है जिससे गावों का विकास तो संभव हो ही साथ ही उनकी राजनीति भी गाव, जंगल, जमीन , किसान और महिला कल्याण के रूप मे जानी जाती रहे l  
-    सत्येंद्र खरे


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